#बीहड़_के_बागी_मानसिंह●●●
जब-जब चंबल के बीहड़ों की बात होती है, तो लोग डर से कांपने लगते हैं.
आज तक भी चंबल में जाने से पहले हर इंसान कई बार सोचता है कि कहीं वहां कोई डाकू न मिल जाए… या कुछ हादसा न हो जाए!
आखिर चंबल की कहानी ही कुछ ऐसी है. इस धरती पर जितने ज्यादा डाकू पैदा हुए हैं, शायद ही कहीं और हुए हों.
बीहड़ों और जंगलों के बीच बसा ये इलाका खतरनाक डाकुओं को पनाह देता था.
बस फर्क इतना था कि वह अपने लूट के लिए कुख्यात होने की बजाए, गरीबों की मदद के लिए विख्यात रहा. अपने कामों के लिए वह चंबल और उसके आसपास के कुछ इलाकों में भगवान की तरह पूजा जाता रहा.
यहां तक कि लोगों ने उसके नाम का एक मंदिर तक बनवाया.
जानकर हैरानी होती है और विश्वास करना मुश्किल कि आखिर एक डाकू को लोग भगवान की तरह कैसे पूज सकते हैं? पर चूंकि यह सच है, इसलिए इसके पीछे की असल कहानी को जानना दिलचस्प हो जाता है–
बीहड़ों पर करते थे जो राज… नाम था ‘#मानसिंह’...
मान सिंह का जन्म आगरा के गांव खेरा राठौर के एक राजूपत परिवार में हुआ. उनका परिवार चंबल में रहता था. वही चंबल जहां दूर-दूर तक घने जंगल और बीहड़ दिखाई देते हैं. कहते हैं कि मान सिंह के घर की हालत बहुत ज्यादा अच्छी नहीं थी, लेकिन हालत इतनी भी खराब नहीं थी कि वह डकैत बन जाएँ!
किन्तु परिस्थितयों ने उन्हें इस ओर धकेल दिया. उन्होंने हथियार क्यों उठाए इसका जवाब खोजने की कोशिश की जाती है तो एक कहानियां पढ़ने को मिलती है. इस कहानी की मानें तो मान सिंह की पुस्तैनी जमीन पर आसपास के कुछ साहूकारों ने अवैध कब्जा कर लिया था.
मान सिंह ने इसका खूब विरोध किया, लेकिन वह सीधे तरीके से कामयाब नहीं हो पाए. ऊपर से उन्हें इसके चलते परेशानियों का सामना करना पड़ा. अंत में जब उनसे नहीं सहा गया तो उन्होंने अपनी जमीन वापस लेने के लिए हथियार उठा लिए और बागी हो गए.
वैसे भी चम्बल को बागियों की पनाहगाह कहा जाता रहा है
अपनी ही तरह गरीबों पर हो रहे अत्याचारों के लिए खिलाफ जब मान सिंह ने आवाज उठाई तो उनके साथ कई और लोग हो लिए. इनमें उसके कुछ सगे-संबंधी और कुछ साथी शामिल हो गए. इनमें उनके बेटे, भाई नबाब सिंह और भतीजे प्रमुख थे. देखते ही देखते वह लोग अच्छी संख्या में हो गए. करीब 17 लोगों के एक समूह के साथ मान सिंह ने अपनी एक गैंग बना ली और जुल्म करने वालों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.
कहते हैं कि वह गरीबों को सताने वालों के लिए काल बन चुके थे मानसिंह!
वह अपने समय में कितने खतरनाक रहे होंगे… इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि उन्होंने 1939 से लेकर 1955 तक के अपने कालखंड में कभी अपनी बंदूक को शांत नहीं रहने दिया. उन पर लूट के 1,112 और हत्या के 185 मामले दर्ज थे!
नामी डकैत बनने के बावजूद गरीबों के लिए रहे ‘रहमदिल’
मान सिंह के इस गैंग की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वह गरीबों के लिए मसीहा जैसे थे. उसने अपनी लूट के दौरान गरीब लोगों पर कभी जुल्म नहीं किया. बल्कि, उनकी हमेशा मदद की. फिर चाहे गरीबों की बेटियों की शादी करना हो, या फिर किसी की बीमारी का इलाज करवाना. मान सिंह ऐसे कामों में बढ़-चढ़ कर सक्रिय रहे.
महिलाओं के लिए उनके मन में कितना सम्मान था, इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि एक बार उनके किसी साथी पर महिला के साथ दुष्कर्म का आरोप लगा, तो उन्होंने देर न करते हुए उसे अपनी गैंग से बाहर का रास्ता दिखा दिया था.
यही कारण रहा कि गरीबों के दिल में उनकी छवि अच्छी बनती चली गई. उसके क्षेत्र में कोई भी उसे डकैत नहीं कहता था. उनकी नेकी का सिलसिला यूंही चलता रहा और गरीबों के लिए एक मसीहा बनकर उभरे.
बहरहाल, इसमें दो राय नहीं कि उन्होंने भारतीय कानून की हमेशा धज्जियां उड़ाई, जिसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ी. 1955 ईं में मध्य प्रदेश के भिंड में पुलिस ने उसे अपने एनकाउंटर में मार गिराया और इस तरह मान सिंह की कहानी खत्म हो गई.
मान सिंह को मरने से पहले संघ से जुड़े एसएन सुब्बाराव ने एक कार्यक्रम के दौरान भाषण देते हुए सुना था. उनकी बात माने तो वह मान सिंह के भाषण से हैरान थे. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि वह किसी डाकू को सुन रहे हैं. उन्होंने बताया था कि मान सिंह बिल्कुल किसी नायक की तरह लोगों को संबोधित कर रहा था.
#मरने_के_बाद_आज_भी_लोगो_के_दिलो_में_जिंदा_हैं_बागी_मानसिंह●●●
भले ही मान सिंह को पुलिस ने मार गिराया था, लेकिन वह गरीबों के दिल में हमेशा जिंदा रहे. वह उनके लिए क्या मायने रखता था, इस बात को इसी से समझा जा सकता है कि उनकी याद में उनके गांव खेड़ा राठौर में उनके लिए एक मंदिर तक बनाया गया.
सुनकर थोड़ा अजीब लगता है, लेकिन इस मंदिर में नियमित रूप से लोग उनकी पूजा करते हैं. उनके नाम पर एक चालीसा भी रचा गया है, जिसे मंदिर में गाया जाता है.
यही नहीं उनके जीवन पर आधारित कई कहानियों और नुक्कड़ नाटक भी वहां के स्थानीय लोगों ने बनाए हैं, जिनका समय-समय पर मंचन होता रहता है.
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