रविवार, 29 अक्टूबर 2017

राजपूत और चारण

भारतीय इतिहास में चारणों को देवीपुत्र/कविवर/कविराज के तौर पर जाना जाता है, जो कि अपने शब्दों सें बड़े-बड़े राजाओं को जोश से भर देते थे, और अपने शब्दों के वार से घमंडी राजाओं का घमंड भी उतार देते थे।
राजस्थान का एक बड़ा समाज है "राजपूत-समाज", उनकी भी कुलदेवी माँ करणी जी है और चारणों की भी कुलदेवी माँ करणी जी ही है, और ये राजपूत समाज राजस्थान पर राज करने वाले समाज के तौर पर जाना जाता है.....
इसिलए पहले राजस्थान का नाम "राजपुताना" ही था, क्योंकि शुरुआत से ही इस पर राजपूत शासको का राज रहा है...
तो तब से ही राजपूतो और चारणों का आपसी जुगलबंदी शुरू हो गई थी, जो आज भी जारी है...
आज भी जब कहीं पुरुषों में राजपूत और चारण एक साथ खाना खाने बैठते है, तो राजपूत तब तक निवाला नही तोड़ते जब तक चारण ना तोड़े...
और महिलाओं में बुजुर्गो के पाँव छूने का रिवाज हमारे यहाँ आज भी है, परंतु कभी भी कोई राजपूत समाज की महिला (भले ही वो कितनी भी वृद्ध हो ) किसी चारण महिला को अपने पाँव नही छूने देती.. बल्कि खुद चारण महिलाओ के पाँव छूती है, क्योंकि राजपूत महिलाए, चारण महिलाओ का आदर/सम्मान करती है, और देवितुल्य मानती है. चारणों को राजपूत का गुरु भी माना गया है...तो चारण-राजपूत का हमारे यहाँ ऐसा रिश्ता है इसीलिए चारण-राजपूत एक ना हो कर भी एक ही माने जाते है। चारण समाज हमारे लिए सदा पूज्यनीय रहा है और रहेगा ।।

रजवट रै चारण गुरु, चारण मरण सिखाय।
बलिहारी गुरु चारणां, खिण तप सुरग मिलाय।।

जय माँ करणी जी...
जय श्री राम...
जय क्षात्रधर्म...

लेखक- लक्ष्मणसिंह चौराऊ

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