बल्लु जी चम्पावत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
बल्लु जी चम्पावत लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, 28 मई 2020

वीरवर राव बल्लुजी चांपावत रौ इतिहास

#वचन(#कौळ)#निभाने_के_लिए_लड़ते_हुए_दो_बार_वीरगति_को_प्राप्त_हुए_वीरवर_राव_बल्लूजी_चांपावत !

मनुष्य केवल एक बार जन्म लेता है और एक ही बार मरता है। लेकिन, राजस्थान के रेतीले धोरों की फिजाओं में एक ऐसे वीर की कथा गूंजती है जिसने जन्म भले की एक बार लिया हो लेकिन अपने वचन को निभाने के लिए मृत्यु की जयमाला दो बार गले में पहनी। आज भी यहां इस वीर की याद में अक्सर गाया जाता है कि

जलम्यो केवल एक बार, परणी एकज नार।
लडियो, मरियो कौळ पर, इक भड दो-दो बार।।

अर्थात – उस वीर ने केवल एक ही बार जन्म लिया।
परन्तु अपने वचन(कौळ) का निर्वाह करते हुए वह वीर दो-दो बार लड़ता हुआ वीर-गति को प्राप्त हुआ।

जोधपुर के महाराजा गजसिंह ने अपने ज्येष्ट पुत्र अमरसिंह को जब राज्याधिकार से वंचित कर देश निकला दे दिया तो बल्लूजी चाम्पावत व भावसिंह कुंपावत दोनों सरदार अमरसिंह के साथ यह कहते हुए चल दिए कि यह आपका विपत्ति काल है और विपत्ति काल में हम सदैव आपकी सहायता करेंगे। यह हमारा वचन है। दोनों ही वीर अमरसिंह के साथ बादशाह के पास आगरा आ गए। यहां आने पर बादशाह ने अमरसिंह को नागौर परगना का राज्य सौंप दिया।

अमरसिंह को मेंढे लड़ाने का बहुत शौक था इसलिए, नागौर में अच्छी किस्म के मेंढे पाले गए और उन मेंढों की भेडियों से रक्षा हेतु सरदारों की नियुक्ति की जाने लगी और एक दिन इसी कार्य हेतु बल्लू चांपावत की भी नियुक्ति की गयी इस पर बल्लूजी यह कहते हुए नागौर छोडकर चल दिए कि मैं विपत्ति में अमरसिंह के लिए प्राण देने आया था, मेंढे चराने नहीं। अब अमरसिंह के पास राज्य भी है, विपत्ति काल भी नहीं, अतः अब मेरी यहां जरूरत नहीं है।

इसके बाद बल्लू चांपावत महाराणा के पास उदयपुर चले गए। कहा जाता है कि वहां भी अन्य सरदारों ने महाराणा से कहकर उन्हें निहत्थे ही शेर से लड़ा दिया। सिंह को मारने के बाद बल्लूजी यह कह कर वहां से भी चल दिए कि वीरता की परीक्षा दुश्मन से लड़ाकर लेनी चाहिए थी। जानवर से लड़ाना वीरता का अपमान है। इसके बाद उन्होंने उदयपुर भी छोड़ दिया। बाद में महाराणा ने एक विशेष बलिष्ट घोड़ी बल्लूजी के लिए भेजी। जिससे प्रसन्न होकर बल्लूजी ने वचन दिया कि जब भी मेवाड़ पर संकट आएगा तो मैं सहायता के लिए अवश्य आऊंगा। केवल सच्चे मन से एक बार याद कर लेना।

इसके बाद जब अमरसिंह राठौड़ आगरा के किले में सलावत खां को मारने के बाद खुद धोखे से मारे गए, तब उनकी रानी हाड़ी ने सती होने के लिए अमरसिंह का शव आगरे के किले से लाने के लिए बल्लू चांपावत व भावसिंह कुंपावत को बुलवा भेजा (क्योंकि विपत्ति में सहायता का वचन इन्हीं दोनों वीरों ने दिया था)।

बल्लूजी चांपावत अमरसिंह का शव लाने के लिए किसी तरह आगरा के किले में प्रविष्ट हो वहां रखा शव लेकर अपने घोड़े सहित आगरे के किले से कूद गए और शव अपने साथियों को सुपुर्द कर दिया लेकिन, खुद बादशाह के सैनिको को रोकते हुए वीर-गति को प्राप्त हो गए।

कहा जाता है कि इस घटना के कुछ समय बाद जब मेवाड़ के महाराणा राजसिंह का मुगल बादशाह औरंगजेब से युद्ध हुआ। तब महाराणा के मन मे आभास हुआ कि आज बल्लू चांपावत जिंदा होता तो वो अकेला ही काफी था। इतना सोचते ही दूर से एक घुड़सवार आता हुआ प्रतीति हुआ तो कुछ ही क्षण में लोगों ने देखा कि बल्लू चांपावत उसी घोड़ी (जो महाराणा ने उसे भेंट दी थी ) पर बैठ कर तलवार चला रहे हैं।

आगरा में तलवार चलाते वीर-गति को प्राप्त हुए बल्लू चांपावत को लोगों ने दूसरी बार देबारी की घाटी में तलवार चलाते हुए फिर से वीर-गति को प्राप्त होते हुए लोगों ने देखा। कहा जाता है कि वह क्षत्रिय मृत्यु के उपरांत भी अपना वचन निभाने के लिए देबारी की घाटी में युद्ध लड़ने आया था।ऐसे वीरो को तहेदिल से नमनः करता हुँ आज गर्व होता हैं कि हम ऐसे वीर की संतानें हैं जिन्होंने दुसरो के लिए अपने प्राण नियोचावर कर दिये। और अपने वचन(कौळ) के खातिर दो दो बार वीरगति प्राप्त की ....धन्य हैं वीर पुरुष.....धन्य हैं ये राजपूताने की धरां....

जय माँ भवानी
जय राजपुताना

- लक्ष्मणसिंह चौराऊ