आओ सुनो वचन है अनमोल बतलाती कथा,
एक अद्भुत वीर का पोरूष दिखलाती कथा,
मान स्वाभिमान हित, संघर्ष वाला दौर था
चारो ओर मुगलो का आतंक भी घणघौर था,
ना कोई सानी मिलेगा, इस गजब जवानी का,
बल्लू सिंह चम्पावत है नायक इस कहानी का,
इस धरती पर वीर का प्रारब्ध ही कुरबानी है
प्राण से सम्मान प्यारा, परम्परा पुरानी है,
यथार्थ है यह बात देख लो किसी भी वक्त में,
बात अलग ही होती है जी रजपूतों के रक्त में,
देश से दिया निकाला अमर सिंह राठौड़ को,
साथ हो लिए थे बल्लू, छोड़ गढ़ की ठोड़ को,
किया सम्मान शाहजहां ने हवा के झकोर का,
अमर सिंह को दे दिया जी परगना नागोर का,
सुख चैन व वैभव भरा, अमर सिंह का राज था,
शांति ना सुहाती, बल्लु संघर्ष का रिवाज था,
भरपूर है सम्पत्ति अब ओर यश उत्पत्ति होगी
जा रहाँ हूं आऊंगा जब आप पर विपत्ति होगी,
वचन देकर जा रहा हूँ, इतिहास गढ़ने आऊँगा,
याद करना दुर्गम दौर में, युद्ध लड़ने आऊंगा।।
चल दिया था वीर, अश्व उत्कृष्ट था जी दोड़ में,
ले लिया नव ठोर, अब ठीकाना गढ़ चित्तौड़ में,
चित्तौड़ की परिपाटि में, बल्लु जी ढलने लगे थें,
वीर के साहंस से सरदार, सब जलने लेंगे थें,
पड़ गई महंगी लगानी होड इस दिलेर से,
बातो में आकर के बल्लू को लड़ाया शेर से,
षड़यत्रों की चमक को पल में अंधेर कर दिया,
कुछ घड़ी में बल्लू ने बब्बर शेर ढेर कर दिया,
नहीं पशु से लड़ने, आया था समर सजाने को,
वक्त पड़े तो याद करना तलवारे खनकाने को,
आगरा ने धोके से, अमर सिंह को मार डाला,
देह रखी गढ़ बुर्ज पर, चील कव्वो का निवाला,
मुगलों की अपमान नीति जरूरी है परास्त हो,
ऐसी गति इस वीर की कैसे भला बर्दाश्त हो,
कौन वीर लेकर के आये, अमर सिंह की देह,
बिना देह कैसे हो सती, था रानी मन में संदेह,
सुन खबर चल पड़ा था, कमर कसी तलवार,
दुर्त गति से उड़ चला था चम्पावत सरदार,
भय नहीं तनिक वचन पर मर मिट जाने वाला था,
चम्पावत ने ख्वाब सदा ही वीरगति का पाला था,
झटपट घोड़ा दोड़ता, गढ़ में प्रविष्ट हो गया,
मुगलों की शामत आई सब अनिष्ट हो गया,
क्या करें उस युद्ध का, वरणन अद्वितीय था,
युँ लगा जूँ काल भेंरव स्वयं ही अश्वीय था,
मानो की बकरियों के पीछे कोई शेर लग गया,
चहूँ हाहाकार थी मुगलों लाशों का ढ़ेर लग गया,
मारता काटता चम्पावत आर पार बढ़ आया था,
लाशो को सीढियां बना, गढ़ ड्याडी चढ़ आया था,
कूद गया था दुर्ग से, कांधे धर शरीर को,
कब वचन से प्यारे होते, प्राण युद्ध वीर को,
अमर सिंह की देह गई पहूँच, हाडी रानी को,
समा गई सती अनल, स्वर्ग में अगवानी को,
तीक्ष्ण तलवार पर मुगलों का रक्त चढ़ता रहा
बल्लू चम्पावत अकेला अरियो सें लड़ता रहा,
धीरे धीरे चम्पावत की देह रक्त में रमने लगी,
लड़ते लड़ते दौ प्रहर, स्वाश अब थमने लगी,
पा गया अमरत्व ना हारा तनिक वह मूंद तक,
लड़ता ही रहा वह वीरवर रक्त अंतिम बूंद तक,
बढ़ चला है वक्त आगे, छोड़ कर निशान को,
दौ बरस अब हो गये है वीर के बलिदान को।।
अब घिर गया मेवाड़, और संघर्ष की नीति चुनी
वीर थे अति सज्ज पर, दुश्मन संख्या चो गुणी,
राणा ने किया याद, था जी भाव अन्तर अंग का,
अगर बल्लु होता, रंग अलग ही होता जंग का,
चित्तौड़ ने देखा मुख की कही जुबान क्या है,
वीर बल्लू बता गये रजपूत स्वाभिमान क्या है,
रहस्यमई रही बड़ी इतिहास में बल्लू की आहट,
सबने देखा सबने सुनी तलवारो की खनखनाहट
नाम उपर स्वर्णिम माेती जड़ रहा था चम्पावत,
मरन उपरांत दूजी बार लड़ रहा था चम्पावत,
केसे कोई लड़ सकता है, मरने के भी बाद में,
बड़ी ताकत होती है जी, शब्दों की बुनियाद में,
शब्दों में ताकत हो तो, धर्म को निभाने आते,
खुद ईश्वर ही आपका, स्वाभिमान बचाने आते।।